रविवार, 24 मई 2009

"अज्ञान से ज्ञान की ओर"

प्रस्तुतकर्ता '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: पर 5/24/2009 10:39:00 am
"ज्ञान पर सभी का अधिकार "

'' पर सभी का अधिकार है इस इसी सिद्धांत को स्वीकार करते हुए हारवर्ड बिजिनेस स्कूल आदि जैसी 1oo से अधिक प्रमुख्य एवं सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों तथा प्रसिद्द वीडियो -शेयरिंग वेब-साईट यूट्यूब [ youtube.com ] ने परस्पर संयुक्त - सहयोग करने का निर्णय किया है ।

मार्च 2009 से 'यूट्यूब ने अपनी वेब साईट पर शिक्षा अनुभाग भी आरंभ किया है ।

" यूट्यूब के इस अनुभाग में विज्ञान ,गणित ,संगीत एवं अन्य विभिन्न विषयों के दुनिया के शीर्ष शिक्षण संस्थानों एवं विश्व विद्यालयों के कैम्पस में विषय विशेषज्ञों शिक्षकों के द्वारा दिए गये गए ,व्याख्यानों [ लेक्चर्स ] के ज्ञान- वर्धक वीडियों उपलब्ध हैं "

शीर्ष शिक्षण संस्थानों एवं यूट्यूब के इस संयुक्त अभियान के फल - स्वरुप अब आर्थिक अभावों के अथवा किसी अन्य कारणों से श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में शिक्षा न ले पाने वाले छात्र भी गुणवत्तापरक शिक्षा प्राप्त कर सकेंगें । इन शैक्षिक व्याख्यानों [ लेक्चर्स ] के वीडियो देखने हेतु यूट्यूब .कॉम [youtube.com] के मुख्य पृष्ठ पर जा कर केटेगरी [ catagry ] क्लिक कर कैटगरी खुलने पर एजुकेशन [Education] पर क्लिक कर आगे ढूंढ़ सकते है वैसे अभी होसकता है बहुत ज्यादा न मिले ,पर जरा योजना को परवान चढ़ने तो दें।

4 टिप्पणियाँ on ""अज्ञान से ज्ञान की ओर""

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: on 2 जून 2009 को 12:58 am बजे ने कहा…

RAM

admin on 5 जून 2009 को 6:34 pm बजे ने कहा…

बहुत ही सार्थक शुरूआत है यह।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

स्वप्न मञ्जूषा on 26 जुलाई 2009 को 6:56 pm बजे ने कहा…

यह तो बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने...
छात्र कभी भी, कहीं भी, कुछ भी देख सकते हैं, बार-बार देख सकते हैं, समझ सकते हैं....
बहुत ही अच्छा प्रयास हैं यह, एक सार्थक कार्य की शुरुआत हुई है सही समय पर..
आपका धन्यवाद, इसे हम तक पहुँचाया आपने...

alka mishra on 2 दिसंबर 2009 को 10:50 pm बजे ने कहा…

happy birthday to you ,with spritual love and gaurd of honour

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टीपियाने ने पहले पढ़ने के अनुरोध के साथ:
''गंभीर लेखन पर अच्छा,सारगर्भित है ,कहने भर सेकाम नही चलेगा;पक्ष-विपक्ष की अथवा किसी अन्य संभावना की चर्चा हेतु प्रस्तुति में ही हमारे लेखन की सार्थकता है "
हाँ विशुद्ध मनोरनजक लेखन की बात अलग है ; गंभीर लेखन भी मनोरनजक {जैसे 'व्यंग'} हो सकता है '|

वैसे ''पानाला गिराएँ, जैसे चाहे जहाँ, खटोला बिछाएँ
कहाँ यह आप की मर्ज़ी ,आख़िरी खुदा तो आप ही हो ''

 

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